सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ग़ज़ल

बेसदा हम हैं तो क्या
हममें नहीं है जिंदगी

जान जाएँ हम जिसे
ऐसी नहीं है जिंदगी

हम चले - चलते रहे
उस दूर मंजिल कि तरफ

पास आकर भी सदा
एक अजनबी है जिंदगी

शब्द में ढाला किये
खूंटों में इसे बाँधा किये

चंद खूंटों में कभी
बंधती नहीं है जिंदगी

एक कविता

पास तुम आ जाओ तो क्या बात हो
दूर रहने का नहीं अब हौसला

शब्द से ग़म कम नहीं होता कोई
कम करो अब तुम सनम ये फासला

शब्द बोझिल हो गए हैं इन दिनों
बोझ ढोने का नहीं अब हौसला

शब्द केवल शब्द हैं इकरार के
कम नहीं होता है इनसे फासला

आज जबकि मिट गयी है दूरियां
रह नहीं पाया है कोई  फासला

शब्द जो कि बोझ थे ताजिंदगी
अब ये जाना शब्द ही थे घोंसला

                     - आकर्षण

ग़ज़ल

अब तुमसे मुझे कोई शिकायत नहीं होगी
कहनी है कई बातें, मगर बात नहीं  होगी

मुमकिन है कि तुम आओ, मेरे पास बैठ जाओ
तेरे चेहरे पे टिकें जो, वो निगाहें नहीं होंगी

दो-चार कदम कि दूरी पे, मंजिल ही चली आये   
जाना है जिससे होकर, वो राह न होगी

ख्वाबों में तुम्हें देख, सारी उम्र गुजार दूं
जो ख़त्म न हो कभी भी, वो रात न होगी

टूटे हुए मन

टूटे हुए मन
इतना मत टूट...
ऐसे मत टूट...
कि गुजर जाए सारी उम्र
टुकड़ा टुकड़ा
बटोरने में...........

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

ग़ज़ल

खुशियों की चाहत ने हमको, ग़म से अपने दूर किया,
और शफक की किस्मत देखो, धरती भी है- अम्बर भी.

हम तन्हाई लेके चले थे, संबल तेरी यादें थीं
यूँ समझो चादर में मेरी, भीड़ थी बस पैबन्दों की.

यूँ तो हमने कदम बढ़ाकर, तेरा ही इस्तेकबाल किया
माना  तेरे चाहनेवाले, होंगे हमसे बेहतर भी.

तुन्द  हवा के शोर ने मुझसे, जाते जाते कह डाला,
मील का पत्थर बनने वाले, तुझसे बेहतर खूंटे भी

अक्ल जलता हुआ सूरज है - सुकून क्या देगा?
खुले बाज़ार में, जो दिल था, बिक गया है अभी.

                        आकर्षण

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...