मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

काश! तुम भी चलते

ये कहाँ तक आ गए हम यूं ही साथ साथ चलते

कब तक उतारोगे तुम शीशे में अपना जीवन
ठोकर लगेगी तुमको, परछायिओं के चलते

हंस के हंसा के कुछ को, रो के रुला के कुछ को
निभती रही है सबसे,   यूँ ही साथ साथ चलते

कुछ दूर तुम भी चलते, कुछ दूर मैं भी चलता
ये सफ़र यूं तय हो जाता, यूँ ही साथ साथ चलते

कलियों ने साथ छोड़ा, काँटों की क्या कहें हम
कहीं के न रहे हम, एक अजनबी के चलते

न जाने क्यों कहे है आईने का अक्स मेरा 
पहचान ले मुझे, तेरी पहचान मेरे चलते

जो गुजर गया सो गुजर गया

जब तेरी राह से होकर मेरा जीवन गुजर गया
कितनी तन्हाईओं के साथ मैं तनहा गुजर गया

एक हंसी आयी थी लब पे, अब उसे क्या सोचना
मील का पत्थर था एक, जो गुजर गया सो गुजर गया

उसके दिल तक पहुँचने का बहुत सीधा सा रास्ता था
एक मैं ही था, जो गलत राह से गुजर गया

तोप, तलवारें, न खंजर, बर्छियों का खौफ दे
इक  हमारा दिल ही था, जो गुजर गया सो गुजर गया

जाते जाते वो मेरे सजदे को आया था 'गिरि'
एक इन्सां उसमे था, जो गुजर गया सो गुजर गया   

सितारों से कह दो

सजा किस खता कि ये हमको मिली है
कि अब भी लबों पे तेरा नाम आये

दफ़न करने आये थे हम चार आंसू
तेरी याद अब खून की नदियाँ बहाए

सितारों से कह दो पुकारें न हमको
हमने ज़मीन पर अभी घर बनाए

मेरी किस्मत को ज़ख्मों से है दोस्ती
तुम ये कहो- क्यों मेरे पास आये

जब जब तुम आये ज़हन में हमारे 
बाजू की मस्जिद से आजान आये

न लटकाओ चेहरे न जेबें टटोलो
कि घर फिर भी घर है, नहीं है सराए

तुम बताओ....

क्या कभी भी सूख पाएंगी नयन की सजल कोरें ?
क्या ह्रदय की भावनाएं लेंगी शत शत हिलोरें ?
राह तेरी तकते तकते नैन थक जायेंगे क्या ?
तुम बताओ....

जबकि तुम मेरे पास में हो
मेरी श्वासोच्छ्वास में हो
धडकनों की राग में हो
फिर भी मुझको ढूंढना होगा तुम्हें क्या बादलों में  ?
तुम बताओ .....

तुम हमारी खुशनसीबी
खुद रोकर मुझको हंसाया
फिर भी क्या रोना पड़ेगा मुझको अविरत ?
तुम बताओ.....

चाहते हो तुम क्या मुझसे ?
ज़िन्दगी या मौत मेरी ?
किन्तु मैंने ये न जाना
कि क्या है पहचान तेरी ? कौन हो तुम?

तुम बताओ......

क्योंकि तुम मेरे अपने हो.....

प्रश्न - गैरों को ग़ज़ल सुनाते हो
मुझको केवल मुक्तक क्यों ?

औरों से हंस हंस मिलते हो
मेरी खातिर पत्थर क्यों ?

मुंहदेखी बातें करते हो
तुम जिस जिस से मिलते हो

मेरी खातिर मेरे साजन
तेरी जिह्वा नश्तर क्यों ?

उत्तर - क्योंकि तुम मेरे अपने हो.....

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...