मंगलवार, 5 जनवरी 2010

ग़ज़ल

खुशियों की चाहत ने हमको, ग़म से अपने दूर किया,
और शफक की किस्मत देखो, धरती भी है- अम्बर भी.

हम तन्हाई लेके चले थे, संबल तेरी यादें थीं
यूँ समझो चादर में मेरी, भीड़ थी बस पैबन्दों की.

यूँ तो हमने कदम बढ़ाकर, तेरा ही इस्तेकबाल किया
माना  तेरे चाहनेवाले, होंगे हमसे बेहतर भी.

तुन्द  हवा के शोर ने मुझसे, जाते जाते कह डाला,
मील का पत्थर बनने वाले, तुझसे बेहतर खूंटे भी

अक्ल जलता हुआ सूरज है - सुकून क्या देगा?
खुले बाज़ार में, जो दिल था, बिक गया है अभी.

                        आकर्षण

शनिवार, 2 जनवरी 2010

एक ग़ज़ल

तुम्हारी नज़र में ग़ज़ल पढ़ रहा  हूँ
नहीं वक़्त के साथ मैं चल रहा हूँ

हरेक शेर हर मिसरा  हरेक लब्ज़ खूबसूरत
आज मैं अपनी ग़ज़ल पे तरस खा रहा हूँ

न साधू हूँ मैं, न तो जोगी ही हूँ
तो फिर नाम तेरा मैं क्यों जप रहा हूँ

कारवां दूर मेरा और मंजिल अजाना
कदम थक गए हैं मगर चल रहा हूँ
                             आकर्षण

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...