सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

दर्द

दर्द जब खुद ही संवर जाता है
जाने कितनों का ग़म चुराता है

मेरे ज़ख्मों का चीरकर सीना
कर्ज़ औरों के वो चुकाता है

तेरी सोहबत का उस पे साया है
और, हरदम उसे सताता है

रास्ते भर वो बात करता रहा
और मंजिल पर मुंह चुराता है


जी लिया, और फिर जिया भी नहीं
रिश्ता कुछ इस तरह निभाता है 

क्या करेगा गिरि जहां का ग़म
तबीयत से तू मुस्कुराता है

- आकर्षण कुमार गिरि

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...