गुरुवार, 14 जुलाई 2011

अपने जज्बात तजुर्बात संभाले रखना

बेरुखी का कोई चिराग जलाये रखना
कम से कम एक सितारे को सताये रखना
शमा जल जायेगी बुझ जायेगी रुसवा होगी
दिल में जज्बात की इक लौ को जलाये रखना 



तू वहीं है जहां से मेरी सदा लौटी है
अगर सुना न हो तो कान लगाये रखना
न जाने कौन सी महफिल है जहां पे मैं भी नहीं
मेरी जज्बात की रंगत को बनाये रखना

साथ वो आये न आये है ये उसकी मर्जी
अपने जज्बात तजुर्बात संभाले रखना
जिन्दगी दूर से कु्छ ऐसी सदा देती है
कोई मुश्किल
नहीं अपनों को अपनाये रखना।

ख्वाब आंखों में न हों फिर भी कोई बात नहीं
अपने सीने में कोई सपना सजाये रखना
कौन कहता है कि मद्धिम नहीं होगा सुरज
अपने अल्फाज की रंगत को चमकाये रखना

नहीं कहूंगा कि मैं हूं किताब पढ मुझको
दिल के अलमीरे में तू मुझको सजाये रखना
कि जिस किताब को पढा नहीं तूने अबतक
उसकी हर वर्क पे नजरों को जमाये रखना



बस एक सवाल से क्यों मुझसे खफा हो बैठे
मेरी बातों को न यूं दिल से लगाये रखना
कोई फ़र्क भी नहीं तुम जवाब दो या न दो
मेरी आदत है - सवालों को सजाये रखना



                               - आकर्षण कुमार गिरि

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...