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सोमवार, 26 अप्रैल 2010

ग़ज़ल

बेसदा हम हैं तो क्या
हममें नहीं है जिंदगी

जान जाएँ हम जिसे
ऐसी नहीं है जिंदगी

हम चले - चलते रहे
उस दूर मंजिल कि तरफ

पास आकर भी सदा
एक अजनबी है जिंदगी

शब्द में ढाला किये
खूंटों में इसे बाँधा किये

चंद खूंटों में कभी
बंधती नहीं है जिंदगी

मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया

दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया।  मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया।  बयान करने को अब कोई बहाना न बना  तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दि...