फिर
बना लूं इक नयी
कागज की कश्ती आज भी।
कागज की कश्ती आज भी।
है कला वो याद,
पर बचपन पुराना चाहिये।।
पर बचपन पुराना चाहिये।।
तेरे घर के सामने
एक घर बनाने के लिये।
एक घर बनाने के लिये।
सिर्फ पैसा ही नहीं,
एक प्लॉट खाली चाहिये।।
एक प्लॉट खाली चाहिये।।
सीखना है कुछ अगर,
इन पंछियों से सीखिये।
इन पंछियों से सीखिये।
तिनका-तिनका
कर के ही,
एक घर बनाना चाहिये।।
एक घर बनाना चाहिये।।
लब को सी लें, अश्क
पी लें,
और उफ्फ भी ना करें।
और उफ्फ भी ना करें।
है बहुत मुश्किल...
मगर,
दिल बाज़ जाना चाहिये।।
दिल बाज़ जाना चाहिये।।
क्या करें क्या ना
करें?
ग़र ऐसी उलझन हो कभी।
ग़र ऐसी उलझन हो कभी।
क्या करें की सोचकर
सब भूल जाना चाहिये।।
सब भूल जाना चाहिये।।
सामने मंजिल अगर,
खुद से बड़ी लगने लगे।
खुद से बड़ी लगने लगे।
छोड़ कर हर राह,
सीधे घर को जाना चाहिये।।
सीधे घर को जाना चाहिये।।
चोंच में तिनका दबाकर,
ऐ गिरि उड़ते हो क्यों?
ऐ गिरि उड़ते हो क्यों?
इक घोंसले के वास्ते,
परवाज़ कितनी चाहिये?
परवाज़ कितनी चाहिये?
- आकर्षण कुमार गिरि।