सोमवार, 2 मई 2011

घर की खुशबू कुरान जैसी है

ख्वाब उनमें नहीं अब पलते हैं
उसकी आंखें चिराग़ जैसी हैं

उसकी आंखों में है जहां का ग़म
उसकी किस्मत खुदा के जैसी है

कहने को तो दुनिया भी एक महफिल है
इसकी सूरत बाजार जैसी है

हरेक घर को इबादत की नजर से देखो
घर की खुशबू कुरान जैसी है

जबसे आया हूं होम करता रहा हूं
जिन्दगी हवन कुंड के जैसी है


- आकर्षण कुमार गिरि

14 टिप्‍पणियां:

  1. आँखों में जहाँ का ग़म है ,
    उसकी किस्मत खुदा के जैसी है...
    बहुत खूब कहा है... लाजवाब..

    जवाब देंहटाएं
  2. गजब की पक्तिया है
    बहुत बहुत शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  3. तू मोहब्बत की नज़र से देख जरा
    हर दिल में इश्क लिए खुदा बैठा है .....

    जवाब देंहटाएं
  4. रचना में प्रस्तुत आपके भाव काबिले तारीफ़ हैं...वाह...लिखते रहें

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  5. आकर्षक ब्लॉग पर आकर्षण स्पष्ट झलक रहा है - रचना की अंतिम चार पंक्तियाँ लाजवाब बन पड़ी हैं - बधाई

    जवाब देंहटाएं

मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया

दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया।  मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया।  बयान करने को अब कोई बहाना न बना  तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दि...