नया कुछ कर दिखाना चाहता हूं
तुम्हें मैं आज़माना चाहता हूं .
ग़ज़ल अबतक अधूरी रह गई है
तुम्हें मक्ता बनाना चाहता हूं .
तेरी हसरत की सुई चुभ रही है
मैं इक धागा पिरोना चाहता हूं .
ज़माना उसकी बातें कर रहा है
जिसे अपना बनाना चाहता हूं .
'गिरि' अब यूं नहीं खामोश रहिए
मैं इक किस्सा मुकम्मल चाहता हूं .
-आकर्षण कुमार गिरि