थोड़ी सुननी, बहुत सुनाानी है।
रात है, नींद है, कहानी है।।
सबको मदहोश कर गयी है वो।
एक खुशबू जो ज़ाफरानी है।।
इश्क में मुस्कुराने की ज़िद है।
अपनी तो बस ही नादानी है।।
मौत आये, सुकून मिल जाये।
उसका पहलू, मेरा पेशानी है।।
आ गये तर्के-ताल्लकु के दिन।
फिर छिड़ी नरगिसी कहानी है।।
हर घड़ी आरजू उसी की है।
कितनी बेअक्ल जिंदगानी है?
खुद से नज़रें मिला नहीं पाता
उसकी आंखों का मरा पानी है।।
ख्वाब का कत्ल हो गया होगा।
कितनी खोयी सी रात रानी है।।
दिल की ये दास्तां कहें किससे?
सबका जीवन भी कितना फ़ानी है?
बेवफा गिरि का नाम लेते क्यों?
अपनी करनी उन्हें छुपानी है।।
-आकर्षण कुमार गिरि।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्वकर्मा जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंबेकरारी से वहशत की जानिब
उम्दा
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