मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

तुम बताओ....

क्या कभी भी सूख पाएंगी नयन की सजल कोरें ?
क्या ह्रदय की भावनाएं लेंगी शत शत हिलोरें ?
राह तेरी तकते तकते नैन थक जायेंगे क्या ?
तुम बताओ....

जबकि तुम मेरे पास में हो
मेरी श्वासोच्छ्वास में हो
धडकनों की राग में हो
फिर भी मुझको ढूंढना होगा तुम्हें क्या बादलों में  ?
तुम बताओ .....

तुम हमारी खुशनसीबी
खुद रोकर मुझको हंसाया
फिर भी क्या रोना पड़ेगा मुझको अविरत ?
तुम बताओ.....

चाहते हो तुम क्या मुझसे ?
ज़िन्दगी या मौत मेरी ?
किन्तु मैंने ये न जाना
कि क्या है पहचान तेरी ? कौन हो तुम?

तुम बताओ......

क्योंकि तुम मेरे अपने हो.....

प्रश्न - गैरों को ग़ज़ल सुनाते हो
मुझको केवल मुक्तक क्यों ?

औरों से हंस हंस मिलते हो
मेरी खातिर पत्थर क्यों ?

मुंहदेखी बातें करते हो
तुम जिस जिस से मिलते हो

मेरी खातिर मेरे साजन
तेरी जिह्वा नश्तर क्यों ?

उत्तर - क्योंकि तुम मेरे अपने हो.....

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...