मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019

सबके अपने- अपने राम।

कोई कहता है राम बनो
कोई कहता मत रावण बन ।
कोई कहता मत बुरा बनो
कोई कहता कर बुरा अंत।
रावण हर एक के मन में है
हर एक के मन में बसे राम।
मैं कुछ के खातिर रावण हूं
और कुछ के खातिर बना राम।
मुझसे सबको कुछ लाभ मिले
ऐसा हरगिज न हो सकता ।
मुझसे सबको नुक्सान रहे
ऐसा भी हरगिज न होगा ।
जिनको नफा हुआ मै उनका राम
जिनको नुकसान- उनका रावण।

बस इतनी कोशिश करनी है
कम से कम नुकसान रहे।
सबको लाभ मिले न मिले
कम से कम का नुकसान रहे।
हर एक के जीवन में जाने
कितने राम हुआ करते है
हर एक के जीवन में जाने
होते हैं कितने रावण।
जीवन का है सार यही
जहां रावण है, हैं वहीं राम।
सबके अपने-अपने रावण
सबके अपने-अपने राम।
                     - गिरि ।

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

समंदर 2

समंदर आँख से ख्वाबों कोओझल कर नहीं सकता ।
समंदर खुद के एहसासों से बोझिल हो नहीं सकता ।।
ये वो शै है जिसे रुसवाइयाँ मिलती हैं जीवन भर ।
समंदर अपने ख्वाबों का तो कातिल हो नहीं सकता ।।
                                                               - गिरि

शनिवार, 2 मार्च 2019

समंदर......

1
समंदर खुद कभी कोई कहीं कश्ती डुबोता है?
सभी का गम सलीके से कलेजे में संजोता है।
जो मिलने आ गयी उसको कभी ये ना नहीं कहता 
समंदर इस तरह नदियों से हर रिश्ता निभाता है।

2
बिना दरिया समंदर का, न होना क्या औ होना क्या?
बिना कश्ती समंदर के कलेजे का धड़कना क्या?
कि दरिया और कश्ती, सब समंदर के ही अपने हैं।
अपनों के लड़कपन का न खलना क्या औ खलना क्या?
- आकर्षण कुमार गिरि

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

दिवाली... संघर्षों का जश्न....


एक अकेले दीपक से दिवाली नहीं होती।
दिवाली होती है
अनगिन छोटे छोटे दीयों से।
अंधेरे को दूर तो कोई भी भगा सकता है।
बल्ब, ट्यूब, एलईडी और न जाने क्या क्या?
मगर इस रोशनी से जश्न नहीं होता।
जश्न तो तब होता है
जब, छोटा से छोटा दीपक
कंपकंपाते लौ के साथ
एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले
अपने मिट जाने तक 
अंधियारे को दूर भगाने को तत्पर होता है।
जश्न वैयक्तिक महानता के नहीं मनाए जाते,
जश्न तो साझा संघर्षों का मनाया जाता है।

आइए,
कौन बड़ा कौन छोटा? 
भूल जाइये,
एक दूसरे का हाथ थामिए,
संघर्ष कीजिये
(कम से कम संघर्ष करते दीखिये।)
उसी दिन उत्सव होगा
उसी दिन दिवाली होगी...।
                               - गिरि।

जवानी,जोश,जज़्बा और अल्हड़पन निखरने दो.......


चिरागों का ये मौसम है, 
चिरागों को मचलने दो।
वो लौ इठला रही देखो, 
लहरने दो, संवरने दो।।

अमावस की अंधेरी रात, 
यूँ रोशन नहीं होती।
जवानी,जोश,जज़्बा और 
अल्हड़पन निखरने दो।।
                                                           -गिरि।

मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया

दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया।  मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया।  बयान करने को अब कोई बहाना न बना  तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दि...