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मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया
दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया। मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया। बयान करने को अब कोई बहाना न बना तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दि...
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दर्द जब खुद ही संवर जाता है जाने कितनों का ग़म चुराता है मेरे ज़ख्मों का चीरकर सीना कर्ज़ औरों के वो चुकाता है तेरी सोहबत का उस पे साया है...
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बेरुखी का कोई चिराग जलाये रखना कम से कम एक सितारे को सताये रखना शमा जल जायेगी बुझ जायेगी रुसवा होगी दिल में जज्बात की इक लौ को जलाये रखना...
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कभी तुमसे शिकायत की, कोई सूरत नहीं होती कि.. मैं जब मैं नहीं होता, तभी तुम तुम भी नहीं होती तमाशा जिन्दगी में वक्त के साये में होता...
वाह बहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही सुंदर।
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