मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

गिला बेहतर है, दिल की बेकली से....

 मिली बदनामियां मुझको मुझी से

जो गुजरे हम तेरी घर की गली से।


जमीं पर तब मोहब्बत भी नहीं थी

तेरी चाहत हमें है उस घड़ी से।


न कह पाओ, निगाहों से बता दो

गिला बेहतर है, दिल की बेकली से।


मैं कांधे पे उठा लेता हूं हल को।

फसल उगती नहीं आवारगी से।


किसानी में कहां बरकत है यारों?

फसल पकती है अश्कों की नमी से।


मोहब्बत में बहुत लिखा है लेकिन

ये घर चलता नहीं है शायरी से।


सुबह से शाम तक फाकाकशी है

'मैं आज़िज़ आ गया हूं शायरी से।'


खुदा ही जब खताएं कर रहे हैं।

शिकायत क्या करेंगे वो 'गिरि' से।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

गिला बेहतर है, दिल की बेकली से....

  मिली बदनामियां मुझको मुझी से जो गुजरे हम तेरी घर की गली से। जमीं पर तब मोहब्बत भी नहीं थी तेरी चाहत हमें है उस घड़ी से। न कह पाओ, निगाहों ...