शनिवार, 2 अप्रैल 2011

दिलों का वास्ता कैसा सवालों के जहां साए ?

तेरे दीदार की हसरत, हमारे दिल में पलती है.
हुई मुद्दत मेरी नज़रें, तुम्हारी राह तकती हैं.
यही ख्वाहिश थी बस दिल में, मैं तेरे दर पे आ बैठा.
और उसपे पूछना तेरा, बताओ क्यों यहां आए ?


अनूठे यार हो तुम भी, गज़ब के प्यार हैं हम भी.
भले मझधार हो तुम भी, सुनो पतवार हैं हम भी.
सवालों से तेरे घबरा गया तो ख़ाक याराना.
दिलों का वास्ता कैसा सवालों के जहां साए ?

यही इल्ज़ाम है तुम पर, कि दिल बर्वाद करते हो.
हसीं दिल के कई टुकड़े, दीवानावार करते हो.
मैं तुमसे ये न पुछूंगा, क्यूं वादे से मुकर बैठे ?
मैं तेरा हो नहीं पाया, तू मेरा हो नहीं पाए.

                              - आकर्षण कुमार गिरि

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर भाव दोस्ती को समर्पित ...आपका आभार

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  2. आप सभी लोगों क बहुत बहुत आभार....

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  3. बहुत अच्छे .... शब्द ही नहीं मिल रहे क्या कहूं ? लगता है जैसे दिल का दर्द शब्दों रूपी थाली में परोस कर रख दिया है । लाजबाव.........

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  4. अनजुड़े रिश्तों की कसक का सुन्दर वर्णन

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