जिसे शिद्दत से जब चाहा, वही हर बार छूटे हैं।ज़माना तब नहीं समझा, ज़माना अब क्या समझेगा?
कि तब हम छूट जाते थे, मगर अब टूट जाते हैं।
- गिरि
दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया। मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया। बयान करने को अब कोई बहाना न बना तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दि...
बहुत सुन्दर और मार्मिक रचना।
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