शुक्रवार, 18 जून 2010

तुझ पर कोई भी आंच न आये


मोहब्बत में कभी तुम पर, कोई भी आंच न आये
कहीं भी तू रहे, सर पर, दुआओं के रहें साए
मोहब्बत के सफ़र में चल पड़े तो याद रख साथी
सफ़र लंबा है और मिलते, दरख्तों के नहीं साए 

जिस महफ़िल में रहते हो, बड़ा हलचल मचाते हो 
कभी किस्से सुनाते हो, कभी ग़ज़लें सुनाते हो 
बड़ा आसान था और तुम बड़े मशहूर हो बैठे 
हमारा नाम जब आया, बताओ तुम क्यों घबराए

हमारी और तुम्हारी दास्तान, एक रोज़ ऐसी हो
कि जागूं रात भर मैं भी, तुम्हें भी नींद न आये 
मुझे तुम हमसफ़र अपना बना लेना मगर सुन ले
नहीं फिर पूछना- हमको, कहाँ लाये और क्यों लाये?

हमारे दिल में रहते हो, हमीं पर वार करते हो
सुना है आजकल तुम तो बड़े व्यापार करते हो
नफ़ा नुकसान अपना तुम समझ लेना मगर साथी
हैं नाज़ुक डोर ये रिश्ते इन्हें खींचा नहीं जाए.  
- आकर्षण कुमार गिरि

3 टिप्‍पणियां:

  1. dear nitish ji,

    i am a news editor in a news paper called prabhatkiran ( a part of india’s largest group dainik bhaskar). sir, i want to publish ur poems on weekly base in my sunday special page. pls give me instructions, what should i do for that purpose. thanx

    pushpendra albe
    09753332973

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. dear pushpendraji,
    bahut bahut dhanyawaad ki aapne meri kavitaaon mein ruchi dikhaayi. Main abhi vyast hoon. Main jald hi khud aapse sampark karoonga. Ek baat aur, main aakarshan kumar giri hoon, nitish nahin. Main apni profile jald hi update karoongaa.

    जवाब देंहटाएं

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...