अदावत है मोहब्बत की कमी से।
शराफत मिट गई जग की बही से।
कथा कैसे कहें अपनी किसी से।
मोहब्बत थी हमें एक अजनबी से।
तुम्हें जाना था पीछे की गली से।
तो क्यों आए थे आगे की गली से।
तआर्रुफ कर तो लूं तेरी गली से।
सफर होगा शुरू अगली सदी से।
मुसाफिर हम रहे पिछली सदी से
सफर कटता नहीं आवारगी से।
समाती ही नहीं ये डायरी में।
'मैं आज़िज़ आ गया हूं शायरी से।'
दुआ अब आखिरी कीजे खुदा से।
लहू रुकता नहीं अब फ़िटकरी से।
तखल्लुस में परेशानी न होती।
ग़ज़ल लिखते अगर संजीदगी से।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें