मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया।
बयान करने को अब कोई बहाना न बना
तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दिया।
बहर में आईं ग़ज़ल बहर में आईं हयात।
गम-ए-हयात मेरी शायरी ने काट दिया।
वो मेरे हाल पे चिलमन गिरा के बैठ गया।
मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया।
तूर तक राह तेरी बंदगी का जाता है
'ये रास्ता मिरी आवारगी ने काट दिया।'
इश्क था जहर, जहर दोस्ती तुम्हारी थी।
इश्क का जहर तेरी दोस्ती ने काट दिया।
जिंदगी नाप मेरा उम्र भर तो लेती रही
अंत में मौत की कारीगरी ने काट दिया।
लबों से मेरी हंसी दूर बहुत दूर रही
हमारे इश्क को संजीदगी ने काट दिया।
मौत उसको न सिलेगी न बुनेगी उसको
तमाम उम्र जिसे जिंदगी ने काट दिया।
कोई
मकता, न तखल्लुस न ही उन्वाँ कोई
ग़ज़ल की बंदिशों को बेखुदी ने काट दिया।