मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

तू उससे आंख मिला, बातचीत जारी रख......

अपनी आंखों में 

हसीं ख्वाब की स्याही रख।

बहुत प्यासा है तू

पास एक सुराही रख।।




तेरी मंजिल की हदें 

तुझसे ही गुजरती हैं।

एक मुसाफिर है तू

तू मन का सफर जारी रख।।


वो न लहरों में कभी डूबा है

औ न डूबेगा।

तू हिफाजत से रहेगा

तू उससे अपनी यारी रख।।




उसने बड़े ही करीने से 

बनाई है दुनिया।

ये तुझपे है कि 

उस दुनिया की तू सफाई रख।।




हमसे बिछड़ोगे तो 

आधे ही कहे जाओगे।

मुकम्मल दासतां के वास्ते 

तू मुझसे यारी रख।।


खूब हंसके फरेब देते हैं 

ये दिलवाले।

या तो तू दिल को संभाल

या तो तू अय्यारी रख।।




ऐसी क्या बात हुई 

मुझसे खफा बैठे हो।

कभी तो ऐसा हो

मेरी साफगोई की कदर भी रख।।


वो दिलफरेब है

करता है बात बस हल्की।

तू उससे कुछ न कह

अपनी निगाह भारी रख।।




'गिरि' की आंखों में 

इक खुशबू है तेरे चाहत की।

तू उससे आंख मिला

बातचीत जारी रख।।

                                     - आकर्षण कुमार गिरि।


बुधवार, 29 जुलाई 2015

इक घोंसले के वास्ते, परवाज़ कितनी चाहिये......

फिर बना लूं इक नयी 

कागज की कश्ती आज भी।

है कला वो याद

पर बचपन पुराना चाहिये।।


तेरे घर के सामने

 एक घर बनाने के लिये।

सिर्फ पैसा ही नहीं

एक प्लॉट खाली चाहिये।।


सीखना है कुछ अगर

इन पंछियों से सीखिये।

तिनका-तिनका कर के ही

एक घर बनाना चाहिये।।



लब को सी लें, अश्क पी लें

और उफ्फ भी ना करें।

है बहुत मुश्किल... मगर

दिल बाज़ जाना चाहिये।।


क्या करें क्या ना करें

ग़र ऐसी उलझन हो कभी।

क्या करें की सोचकर

सब भूल जाना चाहिये।।


सामने मंजिल अगर

खुद से बड़ी लगने लगे।

छोड़ कर हर राह

सीधे घर को जाना चाहिये।।

चोंच में तिनका दबाकर, 
गिरि उड़ते हो क्यों?

इक घोंसले के वास्ते

परवाज़ कितनी चाहिये?

                - आकर्षण कुमार गिरि।

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

जब समझोगे, तब समझोगे.......


बेदर्द सवालों के मतलब

जब समझोगे तब समझोगे।

दुखती रग क्योंकर दुखती है

जब समझोगे तब समझोगे।।





रुखे-सूखे रिश्ते-नाते

और मरासिम मद्धम से।

इनसे होकर कैसे गुजरें

जब समझोगे तब समझोगे।।




एक और एक ग्यारह भी है

एक और एक सिफर भी है।

ये अहले सियासी बातें हैं

जब समझोगे तब समझोगे।।



मंजिल के आने से पहले

मैं क्यों थक कर बैठ गया?

मंजिल भी दूर छिटकती है

जब समझोगे तब समझोगे।।


दिल से दिल को मिलाना होगा

आंख मिलाने से पहले।

ये है बुनियादी बात मगर

जब समझोगे तब समझोगे।।



बदनामी को मोल लिया

हर ताने पर साधी चुप्पी।

मेरी खामोशी का मकसद,

जब समझोगे तब समझोगे।।


हमने तुमको हमदम जाना

तुमने हमको बेच दिया।

'गिरि' के मोल को क्या जानो

जब समझोगे तब समझोगे।।
                                          

                                                    -आकर्षण कुमार 'गिरि'

रविवार, 14 जून 2015

शायद वो भी हमदम निकले......

तुम माटी के पुतले निकले।

सोच से बिल्कुल उल्टे निकले।।


मंजिल उनके सजदे करती।

जो भी घर से बाहर निकले।।


अपने ग़म को बांध के रख लो।

शायद अरमां अब कम निकले।।


घर की जानिब जिनका रुख था।

वो ही सबसे बेहतर निकले।।


उसको चल कुछ कह कर निकलें।

शायद वो भी हमदम निकले।।


तुम थे... मैं था... ठीक ही था।

तीसरे शायद मौसम निकले।।


महफिल को बेनूर है होना।

हम निकलें या.. हमदम निकले।।


शफक तुम्हारे कदमों में है।

लेकिन 'गिरि' को अब पर निकले।।


    - आकर्षण।

शनिवार, 23 मई 2015

मौला तेरे घर आएंगे....


जब भी राज उजागर होगा ।
सामने कोई सागर होगा ।।

जिसकी जितनी चादर होगी
 उसका उतना ही कद होगा ।।

जीवन जिसका खुद एक दर्पण ।
शायर वो ही शायर होगा ।।

दिल की बात को दिल में रखना ।
गागर तब ये सागर होगा ।।

उससे कन्नी काट के चलना ।
जिसके हाथ में पावर होगा ।।

मौला तेरे घर आएंगे ।
जब तू खुद से बाहर होगा ।।

'गिरि' को उसमें डूबना होगा ।
जिसका नाम समंदर होगा ।।

                - आकर्षण।

मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया

दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया।  मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया।  बयान करने को अब कोई बहाना न बना  तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दि...