वो तड़पेगा मोहब्बत की कमी से
जो जलता है निगाहों की नमी से।
यही दस्तूर है सदियों सदी से
समंदर खुद नहीं मिलता नदी से।
मिलन का बोझ सारा है नदी पे
जो बहती अनवरत अपनी खुशी से।
निभाएं इस कदर रिश्ता सभी से
समंदर ना नहीं कहता नदी से।
तुम्हें करना है क्या ये तुम जानो
शिकायत ना करेंगे हम किसी से।
वज़न काबू में आता ही नहीं है
मैं आज़िज़ आ गया हूं शायरी से।
मुझे तुम मिल गए हो जिंदगी में
गिला क्यों कर करेंगे मुफलिसी से।
गिरि तुमको कोई न समझेगा
करो शिकवा मगर संजीदगी से।