शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

ऐसी वैसी बेतरतीब.....

एक तो तेरी याद, ऊपर से ये जिंदगी बेतरतीब।
कर लूंगा मैं खुद से बातें, ऐसी वैसी बेतरतीब।।

शेरों के किस गुलदस्ते को, अपनी गज़ल बना बैठे।
मतला मक्ता, मक्ता मतला, ऐसी वैसी बेतरतीब।।

हाल पूछते थे, या मेरे दिल को और दुखाना था।
अल्हड़ जीवन चलती रहती, ऐसी वैसी बेतरतीब।।

ख्वाबों में आने से पहले, थोड़ा और सिमटना तुम।
नींद न जाने कब आएगी, ऐसी वैसी बेतरतीब।।

मंज़िल मुंह बिचकाती अाई, आंख दिखाकर चली गई।
सीधी राह पे चाल हमारी, ऐसी वैसी बेतरतीब।।

बेखुद गिरि से मत पूछो, वो क्या समझे, वो क्या जाने।
सीधी राह पे चाल हमारी, ऐसी वैसी बेतरतीब।।
                                                 - गिरि ।

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