मैं तारों से निभाना चाहता हूँ.
मशीयत से कहो चाहे न मुझको
ज़मीन पर घर बनाना चाहता हूँ
ये दम है कि निकलता ही नहीं
मैं एक वादा निभाना चाहता हूँ.
मुझे बेकद्र दुनिया क्योंकर समझे
ज़माने को बदलना चाहता हूँ.
वो तड़पेगा मोहब्बत की कमी से जो जलता है निगाहों की नमी से। यही दस्तूर है सदियों सदी से समंदर खुद नहीं मिलता नदी से। मिलन का बोझ सारा है नदी ...
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