कांपती कश्ती दिखी मझधार में
तुम बहुत याद बहुत याद बहुत याद आये.
बीती सदियों का जब हिसाब किया
तुम बहुत याद बहुत याद बहुत याद आये.
आज फिर जीने कि ललक जागी है
तुम बहुत याद बहुत याद बहुत याद आये.
उसने किसी और को ज़ालिम कहा
तुम बहुत याद बहुत याद बहुत याद आये.
उस फ़साने में फिर से 'गिरि' का ज़िक्र था
और तुम बहुत याद बहुत याद बहुत याद आये.
-आकर्षण कुमार गिरि
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