जिंदगी से निबाह करते रहे.
रोज़, हर रोज़ हम बदलते रहे.
दुश्मनों से सदा निभाते रहे.
दोस्तों से फ़रेब करते रहे.
पग पग पे बिछी थी कोई शतरंजी बिसात.
कभी प्यादा, कभी घोड़े की तरह चलते रहे.
कोइ क्योंकर मेरा स्थायी पता मांगे है.
घर किराए का था - हर रोज़ बदलते रहे.
कोई कहता था कि पत्थर के हो तुम.
तुझको हम रोज़ पूजते ही रहे.
मैं भला कैसे समझ पाता तुझे.
तुम तो हर रोज़ रंग बदलते रहे.
तेरी दुआओं में है गज़ब का असर.
और हम रोज़ अपनी जान से गुजरते रहे.
आवारगी ने "गिरि" तुम्हें मशहूर कर दिया.
रास्ते के हो गये, किसी मंज़िल के न रहे.
bahut khub aakarshan ji likhte rahiye
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