दर्द जब खुद ही संवर जाता है
जाने कितनों का ग़म चुराता है
मेरे ज़ख्मों का चीरकर सीना
कर्ज़ औरों के वो चुकाता है
तेरी सोहबत का उस पे साया है
और, हरदम उसे सताता है
रास्ते भर वो बात करता रहा
जी लिया, और फिर जिया भी नहीं
रिश्ता कुछ इस तरह निभाता है
क्या करेगा गिरि जहां का ग़म
तबीयत से तू मुस्कुराता है
- आकर्षण कुमार गिरि