तुम्हारी नज़र में ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ
नहीं वक़्त के साथ मैं चल रहा हूँ
हरेक शेर हर मिसरा हरेक लब्ज़ खूबसूरत
आज मैं अपनी ग़ज़ल पे तरस खा रहा हूँ
न साधू हूँ मैं, न तो जोगी ही हूँ
तो फिर नाम तेरा मैं क्यों जप रहा हूँ
कारवां दूर मेरा और मंजिल अजाना
कदम थक गए हैं मगर चल रहा हूँ
आकर्षण