दे दे खुदा के नाम पे प्यारे ताक़त हो गर देने की.
चाह अगर तो मांग ले मुझसे हिम्मत हो गर लेने की.
कौन यहाँ किसका होता है, सब मतलब के रिश्ते हैं.
धन दौलत की भाषा में कब कद्र हुई ज़ज्बातों की.
चाँद ज़मीं पर कब आया कब सूरज जलना छोड़ सका.
सबकी अपनी अपनी फितरत, शमा की परवाने की.
अरे तुम्हारे नाम की दुनिया आज नहीं तो कल होगी.
आगे बढ़ तू छोड़ पुरानी यादें अपनी बचपन की.
उपरवाले की उसपर ही वर्क-ए-इनायत होती है.
जिसको ना पाने की हसरत और न ग़म कुछ खोने की.
ऊपर वाले की महफ़िल में सब अपनी मन की गाते हैं.
जिसके गीत में औरों का ग़म क्या बात है उस दीवाने की.
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जवाब देंहटाएंtabaahi hai tabaahi...
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