मैंने जिसको महसूस किया है, वो तेरी परछाई है.
देर हुई पर समझ गया , कितनी तनहा तन्हाई है.
हम ये समझे चुका चुके, हम तेरा जन्मों का कर्जा
और तकाजा करने देखो, फिर तेरी याद आई है.
जीवन की इस डोर को कब का, वक़्त के हाथो छोड़ चले
किस्मत चाहे गुल जो खिलाये, होनी अपनी रूसवाई है.
दौलत की है खान ये दुनिया-चांदी, सोना, महल, दोमहले
अपने हाथ में फूटा खप्पर, दिल कि यही कमाई है.
आज ग़ज़ल के पीछे क्यों वो आवारा सा फिरता है?
शायद 'गिरि' के फक्कडपन को, याद किसी की आई है.
- आकर्षण
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