बेसदा हम हैं तो क्या
हममें नहीं है जिंदगी
जान जाएँ हम जिसे
ऐसी नहीं है जिंदगी
हम चले - चलते रहे
उस दूर मंजिल कि तरफ
पास आकर भी सदा
एक अजनबी है जिंदगी
शब्द में ढाला किये
खूंटों में इसे बाँधा किये
चंद खूंटों में कभी
बंधती नहीं है जिंदगी
वो तड़पेगा मोहब्बत की कमी से जो जलता है निगाहों की नमी से। यही दस्तूर है सदियों सदी से समंदर खुद नहीं मिलता नदी से। मिलन का बोझ सारा है नदी ...
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