मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

सितारों से कह दो

सजा किस खता कि ये हमको मिली है
कि अब भी लबों पे तेरा नाम आये

दफ़न करने आये थे हम चार आंसू
तेरी याद अब खून की नदियाँ बहाए

सितारों से कह दो पुकारें न हमको
हमने ज़मीन पर अभी घर बनाए

मेरी किस्मत को ज़ख्मों से है दोस्ती
तुम ये कहो- क्यों मेरे पास आये

जब जब तुम आये ज़हन में हमारे 
बाजू की मस्जिद से आजान आये

न लटकाओ चेहरे न जेबें टटोलो
कि घर फिर भी घर है, नहीं है सराए

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

करो शिकवा मगर संजीदगी से

वो तड़पेगा मोहब्बत की कमी से जो जलता है निगाहों की नमी से। यही दस्तूर है सदियों सदी से समंदर खुद नहीं मिलता नदी से। मिलन का बोझ सारा है नदी ...