आज
जबकि ये तय है
कि हमें बिछड़ जाना है
हमारे और तुम्हारे रास्ते
अलग अलग हो चुके हैं
तो
ये सोचना जरूरी है
कि हम गलत थे
या तुम?
मैं सोचता हूँ
और सोचता चला जाता हूँ...
कहीं मैं तो गलत नहीं था
शायद!
क्योंकि तुम तो गलत हो नहीं सकते
मुझे लगता है
मैं ही गलत था
मैं ये भी जानता हूँ
कि
तुम भी यही सोच रही हो
कि कहीं तुम तो गलत नहीं थी?
सच मानो-
रास्ते आज भले ही अलग अलग हो गए हों
पर
न मैं गलत था
और न ही तुम.
फिर ये जुदाई क्यों?
ये प्रश्न बार बार कौंध जाता है
मेरे जेहन में .
मैं सोचने लगता हूँ...
जमीं आसमां नहीं मिलते
( विज्ञान में यही पढ़ा है
पर विज्ञान कुछ भी कहे )
जमीं आसमां मिलते हैं
एक छोर से मिलते हुए
वे जुदा होते हैं
और
फिर मिल जाते हैं
सच्चाई यही है कि
चारो दिशाओं में
वे एक हैं.
बीच में हम जैसे लोग हैं
जो ये समझते हैं कि
जमीं आसमां एक नहीं हैं.
करोड़ों तारों कि तपिश
अपने कलेजे में रखने वाला आसमां
और
अरबों लातों की मार सहने वाली धरती
एक हैं.
फिर हम तुम जुदा कैसे?
हम मिलकर चले थे,
आज जुदा हैं -
पर आगे फिर मिलेंगे.
हाँ!
उसके बाद जुदाई नहीं होगी
क्योंकि
जितना दर्द तुमने अपने कलेजे में छुपा कर रखा है
उतना ही शायद मैंने भी.
और दर्द सीने में दबाये रखने वाले
एक होकर रहते हैं
वो भी ऐसे
जैसे दूर क्षितिज पर
जमीं और आसमां
जहाँ से वे अलग नहीं होते.
मैं तुम्हें रुकने को नहीं कहूंगा
और न ही मिलने को कहूंगा
पर हम फिर मिलेंगे
उसी ख़ामोशी से जैसे पहले मिले थे.
हाँ !
ये मिलन खामोश होगा
क्योंकि
जिनके कलेजे में दर्द होता है
उनकी जुबां नहीं हिलती
बिलकुल मेरी तरह....
बिलकुल तुम्हारी तरह.....