मंगलवार, 18 नवंबर 2025

करो शिकवा मगर संजीदगी से

वो तड़पेगा मोहब्बत की कमी से

जो जलता है निगाहों की नमी से।


यही दस्तूर है सदियों सदी से

समंदर खुद नहीं मिलता नदी से।


मिलन का बोझ सारा है नदी पे 

जो बहती अनवरत अपनी खुशी से।


निभाएं इस कदर रिश्ता सभी से

समंदर ना नहीं कहता नदी से।


तुम्हें करना है क्या ये तुम जानो

शिकायत ना करेंगे हम किसी से।


वज़न काबू में आता ही नहीं है

मैं आज़िज़ आ गया हूं शायरी से।


मुझे तुम मिल गए हो जिंदगी में

गिला क्यों कर करेंगे मुफलिसी से।


गिरि तुमको कोई न समझेगा

करो शिकवा मगर संजीदगी से।

शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

मुझे नफरत हुई है खुदकुशी से

मुखातिब हो गया हूं आदमी से।

मोहब्बत हो गई है जिंदगी से।

दुआओं में असर उसके नहीं है।

दुआ देता है वो, पर बेदिली से।


मोहब्बत का नया दस्तूर है ये।

नहीं मिलता यहां कुछ बंदगी से।


गुनाहों को किसी के नाम करता।

मेरा चेहरा नहीं मिलता किसी से।


कोई कितना भी चाहे सर पटक ले।

ये मसला हल नहीं होगा किसी से।


यही हासिल हुआ आवारगी में।

मसाफ़त हो गई उसकी गली से।


बहुत मरता हूं पर मरता नहीं मैं।

मुझे नफरत हुई है खुदकुशी से।


खता कुछ हो गई होगी हमीं से।

ये होती रहती है हर आदमी से।


बहर में कैद कर दिया मुझको।

'मैं आज़िज आ गया हूं शायरी से।'


न बैठो इस कदर संजीदगी से।

'गिरिजी' तब निभेगी जिंदगी से।


शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

दूर होठों से बददुआ रखना...

 साथ अपने ये फलसफा रखना।

मिलने जुलने में फासला रखना।


जिंदा हो तुम, यकीन करने को।

"सामने अपने आईना रखना।"


ख्वाब आंखों में अल्हदा पालो।

आसमानों से राब्ता रखना।


वो जो दिल के करीब रहता है

जान ले लेगा, हौसला रखना।।


कश्तियां राह भी भटकती हैं।

एक तारा निगाह में रखना।


आवले अब न बात मानेंगे

साथ में दर्द की दवा रखना।


मेरी सोहबत में कुछ न पाओगे

दोस्त मुझसा कभी नहीं रखना।


जब कभी घर से दूर जाना हो

घर की खुशबू को पास में रखना।


खुद पे काबू नहीं रहे जब भी

दूर होठों से बददुआ रखना।


जब भी आओ गरीबखाने में

पहले दायां कदम सदा रखना।


कल ये गीतों का काफिला होंगे

ज़ख्म अपने सम्भाल कर रखना।


चांद तारों को छू के आने को

गिरि के सर पे अपने पा रखना। 

            - आकर्षण कुमार गिरि

गुरुवार, 31 जुलाई 2025

मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया

दिलों का दर्द मेरी आशिकी ने काट दिया। 
मेरी मियाद मेरी मैकशी ने काट दिया। 

बयान करने को अब कोई बहाना न बना 
तेरी ज़बान मेरी ख़ामुशी ने काट दिया। 

बहर में आईं ग़ज़ल बहर में आईं हयात। 
गम-ए-हयात मेरी शायरी ने काट दिया। 
 
वो मेरे हाल पे चिलमन गिरा के बैठ गया। 
मेरे जिगर को मेरी मुफलिसी ने काट दिया। 

तूर तक राह तेरी बंदगी का जाता है 
'ये रास्ता मिरी आवारगी ने काट दिया।'

इश्क था जहर, जहर दोस्ती तुम्हारी थी। 
इश्क का जहर तेरी दोस्ती ने काट दिया। 

जिंदगी नाप मेरा उम्र भर तो लेती रही
अंत में मौत की कारीगरी ने काट दिया। 

लबों से मेरी हंसी दूर बहुत दूर रही 
हमारे इश्क को संजीदगी ने काट दिया। 

मौत उसको न सिलेगी न बुनेगी उसको 
तमाम उम्र जिसे जिंदगी ने काट दिया। 

कोई मकता, न तखल्लुस न ही उन्वाँ कोई 
ग़ज़ल की बंदिशों को बेखुदी ने काट दिया।

करो शिकवा मगर संजीदगी से

वो तड़पेगा मोहब्बत की कमी से जो जलता है निगाहों की नमी से। यही दस्तूर है सदियों सदी से समंदर खुद नहीं मिलता नदी से। मिलन का बोझ सारा है नदी ...