शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

मुझे नफरत हुई है खुदकुशी से

मुखातिब हो गया हूं आदमी से।

मोहब्बत हो गई है जिंदगी से।

दुआओं में असर उसके नहीं है।

दुआ देता है वो, पर बेदिली से।


मोहब्बत का नया दस्तूर है ये।

नहीं मिलता यहां कुछ बंदगी से।


गुनाहों को किसी के नाम करता।

मेरा चेहरा नहीं मिलता किसी से।


कोई कितना भी चाहे सर पटक ले।

ये मसला हल नहीं होगा किसी से।


यही हासिल हुआ आवारगी में।

मसाफ़त हो गई उसकी गली से।


बहुत मरता हूं पर मरता नहीं मैं।

मुझे नफरत हुई है खुदकुशी से।


खता कुछ हो गई होगी हमीं से।

ये होती रहती है हर आदमी से।


बहर में कैद कर दिया मुझको।

'मैं आज़िज आ गया हूं शायरी से।'


न बैठो इस कदर संजीदगी से।

'गिरिजी' तब निभेगी जिंदगी से।


शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

दूर होठों से बददुआ रखना...

 साथ अपने ये फलसफा रखना।

मिलने जुलने में फासला रखना।


जिंदा हो तुम, यकीन करने को।

"सामने अपने आईना रखना।"


ख्वाब आंखों में अल्हदा पालो।

आसमानों से राब्ता रखना।


वो जो दिल के करीब रहता है

जान ले लेगा, हौसला रखना।।


कश्तियां राह भी भटकती हैं।

एक तारा निगाह में रखना।


आवले अब न बात मानेंगे

साथ में दर्द की दवा रखना।


मेरी सोहबत में कुछ न पाओगे

दोस्त मुझसा कभी नहीं रखना।


जब कभी घर से दूर जाना हो

घर की खुशबू को पास में रखना।


खुद पे काबू नहीं रहे जब भी

दूर होठों से बददुआ रखना।


जब भी आओ गरीबखाने में

पहले दायां कदम सदा रखना।


कल ये गीतों का काफिला होंगे

ज़ख्म अपने सम्भाल कर रखना।


चांद तारों को छू के आने को

गिरि के सर पे अपने पा रखना। 

            - आकर्षण कुमार गिरि

तो क्यों आए थे आगे की गली से...

अदावत है मोहब्बत की कमी से। शराफत मिट गई जग की बही से। कथा कैसे कहें अपनी किसी से। मोहब्बत थी हमें एक अजनबी से। तुम्हें जाना था पीछे की गली ...