रविवार, 30 अक्तूबर 2016

है वही उन्वान, लेकिन रोशनाई और है........

चित भी उसकी, पट उसी की,
सब सियासी तौर है।
कह रही है कुछ जबां,
लेकिन कहानी और है।।

था वही, जिसकी इबादत में
जहां पाबोस था।
और, हम समझे कि
दुनिया की खुदाई और है।।

मैं सहन करता रहा हंस हंस के
सब जुल्मो सितम।
वो तो खुद कुछ और,
उनकी बेहयाई और है।।

नींद गहरी है मगर,
अब रात हर बेख्वाब से।
है वही चादर, मगर
अब चारपाई और है।।

दाग छुप जायेंगे,
दीवार पुत जाने के बाद।
घर की पुताई और है,
सच की पुताई और है।।

कहने को तो कह देते हैं-
दुनिया मेरे ठेंगे पर।
जग की परवाह और है
जग की हंसाई और है।।

गीतों में 'गिरि' के अब भी,
है तपिश उस प्यार की।
है वही उन्वान लेकिन,
रोशनाई और है।।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

तू उससे आंख मिला, बातचीत जारी रख......

अपनी आंखों में 

हसीं ख्वाब की स्याही रख।

बहुत प्यासा है तू

पास एक सुराही रख।।




तेरी मंजिल की हदें 

तुझसे ही गुजरती हैं।

एक मुसाफिर है तू

तू मन का सफर जारी रख।।


वो न लहरों में कभी डूबा है

औ न डूबेगा।

तू हिफाजत से रहेगा

तू उससे अपनी यारी रख।।




उसने बड़े ही करीने से 

बनाई है दुनिया।

ये तुझपे है कि 

उस दुनिया की तू सफाई रख।।




हमसे बिछड़ोगे तो 

आधे ही कहे जाओगे।

मुकम्मल दासतां के वास्ते 

तू मुझसे यारी रख।।


खूब हंसके फरेब देते हैं 

ये दिलवाले।

या तो तू दिल को संभाल

या तो तू अय्यारी रख।।




ऐसी क्या बात हुई 

मुझसे खफा बैठे हो।

कभी तो ऐसा हो

मेरी साफगोई की कदर भी रख।।


वो दिलफरेब है

करता है बात बस हल्की।

तू उससे कुछ न कह

अपनी निगाह भारी रख।।




'गिरि' की आंखों में 

इक खुशबू है तेरे चाहत की।

तू उससे आंख मिला

बातचीत जारी रख।।

                                     - आकर्षण कुमार गिरि।


बुधवार, 29 जुलाई 2015

इक घोंसले के वास्ते, परवाज़ कितनी चाहिये......

फिर बना लूं इक नयी 

कागज की कश्ती आज भी।

है कला वो याद

पर बचपन पुराना चाहिये।।


तेरे घर के सामने

 एक घर बनाने के लिये।

सिर्फ पैसा ही नहीं

एक प्लॉट खाली चाहिये।।


सीखना है कुछ अगर

इन पंछियों से सीखिये।

तिनका-तिनका कर के ही

एक घर बनाना चाहिये।।



लब को सी लें, अश्क पी लें

और उफ्फ भी ना करें।

है बहुत मुश्किल... मगर

दिल बाज़ जाना चाहिये।।


क्या करें क्या ना करें

ग़र ऐसी उलझन हो कभी।

क्या करें की सोचकर

सब भूल जाना चाहिये।।


सामने मंजिल अगर

खुद से बड़ी लगने लगे।

छोड़ कर हर राह

सीधे घर को जाना चाहिये।।

चोंच में तिनका दबाकर, 
गिरि उड़ते हो क्यों?

इक घोंसले के वास्ते

परवाज़ कितनी चाहिये?

                - आकर्षण कुमार गिरि।

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

जब समझोगे, तब समझोगे.......


बेदर्द सवालों के मतलब

जब समझोगे तब समझोगे।

दुखती रग क्योंकर दुखती है

जब समझोगे तब समझोगे।।





रुखे-सूखे रिश्ते-नाते

और मरासिम मद्धम से।

इनसे होकर कैसे गुजरें

जब समझोगे तब समझोगे।।




एक और एक ग्यारह भी है

एक और एक सिफर भी है।

ये अहले सियासी बातें हैं

जब समझोगे तब समझोगे।।



मंजिल के आने से पहले

मैं क्यों थक कर बैठ गया?

मंजिल भी दूर छिटकती है

जब समझोगे तब समझोगे।।


दिल से दिल को मिलाना होगा

आंख मिलाने से पहले।

ये है बुनियादी बात मगर

जब समझोगे तब समझोगे।।



बदनामी को मोल लिया

हर ताने पर साधी चुप्पी।

मेरी खामोशी का मकसद,

जब समझोगे तब समझोगे।।


हमने तुमको हमदम जाना

तुमने हमको बेच दिया।

'गिरि' के मोल को क्या जानो

जब समझोगे तब समझोगे।।
                                          

                                                    -आकर्षण कुमार 'गिरि'

रविवार, 14 जून 2015

शायद वो भी हमदम निकले......

तुम माटी के पुतले निकले।

सोच से बिल्कुल उल्टे निकले।।


मंजिल उनके सजदे करती।

जो भी घर से बाहर निकले।।


अपने ग़म को बांध के रख लो।

शायद अरमां अब कम निकले।।


घर की जानिब जिनका रुख था।

वो ही सबसे बेहतर निकले।।


उसको चल कुछ कह कर निकलें।

शायद वो भी हमदम निकले।।


तुम थे... मैं था... ठीक ही था।

तीसरे शायद मौसम निकले।।


महफिल को बेनूर है होना।

हम निकलें या.. हमदम निकले।।


शफक तुम्हारे कदमों में है।

लेकिन 'गिरि' को अब पर निकले।।


    - आकर्षण।

शनिवार, 23 मई 2015

मौला तेरे घर आएंगे....


जब भी राज उजागर होगा ।
सामने कोई सागर होगा ।।

जिसकी जितनी चादर होगी
 उसका उतना ही कद होगा ।।

जीवन जिसका खुद एक दर्पण ।
शायर वो ही शायर होगा ।।

दिल की बात को दिल में रखना ।
गागर तब ये सागर होगा ।।

उससे कन्नी काट के चलना ।
जिसके हाथ में पावर होगा ।।

मौला तेरे घर आएंगे ।
जब तू खुद से बाहर होगा ।।

'गिरि' को उसमें डूबना होगा ।
जिसका नाम समंदर होगा ।।

                - आकर्षण।

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

सुना है इक नया किस्सा, यूं ही हर बार गढ़ते हो

तुम्हारी प्यार की बातों में, इक किस्सा पुराना है
किसी का कर्ज है तुमपर, वो भी हमको चुकाना है। 
मेरी दीवानगी को तुम न समझे हो, न समझोगे
जिसे कल गा रहे थे तुम, उसे सबको सुनाना है।





तेरी आंखों के हर सपने को, सीने में सजा लूंगा
तेरी जज्बात की बातों को, होठों में छुपा लूंगा।
बता, मैं दिल की धड़कन को छुपाऊंगा भला कैसे?
जो धड़कन तेज होती है, तमाशा खूब होता है।





यही शिकवा है बस.. तुमसे, जो जी चाहे वो करते हो
कि तुम जज्बात की बातें, 
भरी महफिल में करते हो।
तेरी दीवानगी में कुछ न हो, पर नाम तो होगा
सुना है इक नया किस्सा, यूं ही, हर बार गढ़ते हो।

                           - आकर्षण कुमार गिरि


 

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...