चलो वादे पे तेरे फिर से ऐतबार किया
कोई सरकार नहीं तुम जो मुकर जाओगे
तन्हाइयों कि भीड़ में तनहा खड़ा हूँ मैं
देखना है कि कितना इंतज़ार कराओगे
इस सफ़र में तुम नए हो, और मैं राही नया
भूले-भटके ही सही, एक रोज़ तो मिल जाओगे
सख्त हिदायत है, ज़मीं से दूर मत जाना कभी
आसमां तक जाओगे, तो बेनिशां हो जाओगे
कुछ कमी तुम में है लेकिन, दूर मत करना उन्हें
ऐसा कर लोगे तो डर है, तुम खुदा हो जाओगे
मुन्तजिर मां ने दरवाजा खुला रखा है कब से
है यकीन उसको, कभी तुम लौट कर घर आओगे
जहां रहो, तेरा मुनासिब सा इस्तेक़बाल रहे
गुरूर में हो तुम, शायद ही 'गिरि' के घर आओगे.
- आकर्षण कुमार गिरि