शुक्रवार, 18 जून 2010

तुझ पर कोई भी आंच न आये


मोहब्बत में कभी तुम पर, कोई भी आंच न आये
कहीं भी तू रहे, सर पर, दुआओं के रहें साए
मोहब्बत के सफ़र में चल पड़े तो याद रख साथी
सफ़र लंबा है और मिलते, दरख्तों के नहीं साए 

जिस महफ़िल में रहते हो, बड़ा हलचल मचाते हो 
कभी किस्से सुनाते हो, कभी ग़ज़लें सुनाते हो 
बड़ा आसान था और तुम बड़े मशहूर हो बैठे 
हमारा नाम जब आया, बताओ तुम क्यों घबराए

हमारी और तुम्हारी दास्तान, एक रोज़ ऐसी हो
कि जागूं रात भर मैं भी, तुम्हें भी नींद न आये 
मुझे तुम हमसफ़र अपना बना लेना मगर सुन ले
नहीं फिर पूछना- हमको, कहाँ लाये और क्यों लाये?

हमारे दिल में रहते हो, हमीं पर वार करते हो
सुना है आजकल तुम तो बड़े व्यापार करते हो
नफ़ा नुकसान अपना तुम समझ लेना मगर साथी
हैं नाज़ुक डोर ये रिश्ते इन्हें खींचा नहीं जाए.  
- आकर्षण कुमार गिरि

शनिवार, 12 जून 2010

जरूरी तो नहीं ...........

हरेक शब की सहर हो ये जरूरी तो नहीं है.
हरेक लब पे तेरा ग़म हो जरूरी तो नहीं है. 

खामोश दिल की सदाओं को वो सुन लेगा यकीनन 
समझ जाए वो दिल की बात जरूरी तो नहीं है. 

कुछ भी हो मोहब्बत में बड़ा नाम होता है. 
हमारी राय भी ऐसी हो जरूरी तो नहीं है. 

जिंदगी दूर - बहुत दूर ले के  आई है. 
उठ के मंजिल भी चली आये जरूरी तो नहीं है.

दरवाज़ा खोलने से पहले इत्मीनान हो लेना. 
हर दस्तक पर मैं होऊं जरूरी तो नहीं है. 

महफ़िल  में बरसते रहे फूलों से कई शेर.
छोड़ जाएँ छाप दिल पर जरूरी तो नहीं है. 

चाँद  तक जा पहुंचे हैं कदम आज इंसान के.
चाँद को बात ये पसंद हो जरूरी तो नहीं है.

इस शहर का एक शायर,एक नाविक और एक महफ़िल.
रात भर चाँद को ढूंढें  ये जरूरी तो नहीं है. 

एक  बार फिर से उसके निशाने पर है गिरि. 
ये उसका आखिरी हो तीर जरूरी तो नहीं है. 

                            आकर्षण.

गरल जो पी नही पाया अमर वो हो नहीं सकता

  जो मन में गांठ रखता है, सरल वो हो नहीं सकता। जो  विषधर है, भुवन में वो अमर हो ही नहीं सकता।। सरल है जो- ज़माने में अमर वो ही सदा होगा। गरल ...